कल रात बैठकर मैंने एक अफ़साना लिखा
तेरे साथ बिताया हर अपना-बेगाना पल लिखा !!
रात भर तन्हायी से की बातें
कुछ सौगातें उसको दी ,कुछ ली हैं !!
खुद के पास बैठे जब, खुद से बातें की
परत दर परत खुलते ही गए राज कई !!
तुम थे मेरे था मुझको भरम फिर भी
इस बेवफ़ाई को तुम्हारी मज़बूरी लिखा !!
जो अल्फाज़ जोड़ते हैं, तोड़ भी देते हैं
फसाना बनने को जिंदगी ने शाम से रातें की हैं !!
जब उस खुदा ने कलम दी मुझे तो
तेरे लिये सारा जहाँ और मेरे हिस्से में वीराना लिखा मैंने !!